Monika garg

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लेखनी कहानी -06-Sep-2022# क्या यही प्यार है # उपन्यास लेखन प्रतियोगिता# भाग(2)

क्या यही प्यार है ( भाग -2)


जोगिंदर घर की ओर जा रहा था तभी रमनी के घर के आगे से जैसे ही गुजरा उसे बहुत तेज तेज आवाजें आ रही थी।रमनी उसकी बचपन की दोस्त थी संग खेले थे दोनों और साथ ही पढ़ें थे एक ही स्कूल मे। जहां जोगिंदर पढ़ाई मे होशियार था वही रमनी फिसड्डी।बचपन से ही खेल कूद मे ध्यान रहा था उसका ऊंट सी लम्बी हो गयी थी ।सारा दिन बच्चों के साथ उछल कूद करती रहती या जोगिंदर के बागो से कभी कच्चे अमरूद ,कभी कच्चे आम तोड़ कर खुद भी खाती और गांव के बच्चों को भी देती।वह जगत दीदी थी सभी बच्चों की।जाहे वो जैसी भी थी लेकिन जोगिंदर उसे मन ही मन चाहने लगा था पर वह सिर्फ इस बात से डर कर अपने प्यार का इजहार नही करता था कि कही पिताजी नाराज ना हो। क्यों कि रमनी के पिता जोगिंदर के यहां खेत बंटाई पर काम करते थे ।धन मे दौलत मे और सभी चीजों मे जोगिंदर के परिवार के पासंग मे भी नही थे। लेकिन जोगिंदर भी इन बातों मे अभी पड़ना नही चाहता था वह पढ़ाई के लिए आगे जाना चाहता था शहर ।

उधर रमनी को भी ये अहसास था कि जोगिंदर मन ही मन उसे पसंद करता है लेकिन उसे ये भी पता था कि वो कभी अपने मुंह से नही कहे गा कि वह उसे चाहता है।बस दोनों मे पहले आप ,पहले आप वाला मामला हो गया था।तभी रमनी जोगिंदर को जलाने के लिए उसके दोस्तों से घुल मिल कर बात करती थी ताकि उसे जलन हो और वो अपने मन की बात कहे।

इसी बीच दसवीं का परिणाम आ गया और जोगिंदर का शहर जाना निश्चित हो गया।साथ ही नरेंद्र की भी मन की इच्छा पूरी हो रही थी।

जोगिंदर रमनी के घर गया तो देखा उसकी मां रमनी पर चिल्ला रही थी ।रमनी एक ओर खड़ी थी ।साडी की झोली आमों से भरी थी उसकी मां उसे डांट रही थी तभी जोगिंदर को आता देख वह चुप हो गयी। जोगिंदर ने पूछा,"क्या हुआ चाची ? इसने क्या शरारत कर दी अब ।"

रमनी की मां गुस्से मे बोली,"अब क्या बताऊं लला ऊंट सी है गयी है घर का कोई काम काज नही सीखती ।बस सारे गांव मे चक्कर गिन्नी बनी घुमती रहती है।कल को शादी ब्याह होने लगा तो कहां से सास को रोटी बना कर खिलाएंगी। लला अब हमारे पास इतना पैसा तो है नही जो इसे आगे पढ़ाए।फिर कौन सा ये पढाई मे भी होशियार है। "

जोगिंदर रमनी से मुखातिब होते हुए बोला,"क्यों री चाची को क्यों तंग करती रहती है। कुछ काम सीख ले घर का पूरे गांव मे उधम करती रहती है। तूने ठेका ले रखा है क्या सब को तंग करने का इधर चाची को तंग करती है उधर स्कूल मे मुझे।"

रमनी की मां उसकी ओर देखकर बोली ,"क्यूं री ।तू लला जी को भी परेशान करती रहती है क्या स्कूल में?"

रमनी जोगिंदर की तरफ मुंह चढ़ा कर मां से मुखातिब हो कर  बोली,"मां तुम्हें नही पता ये बड़ा रौब झाड़ता है अपनी पढ़ाई का ।और मैंने इसे कितनी बार कहा है उस कमली से दूर रहा करे पर ये है कि जान कर उसके पास जाकर बतियाता है।"

मां ने डांटते हुए कहा,"चुप रह बदजात।छोटे लला जी से बतकुटी करती है उनका और तेरा क्या मुकाबला।वो किसी से भी बात करे इससे तुझे क्या।" 

"यही तो चाची ।जरा इससे पूछो।मै कमली से बात करता हूं तो इसे क्यों पेट मे दर्द होता है।"जोगिंदर रमनी के मन की बात उससे कहलवाना चाहता था।

रमनी ने जब ये बात भांप ली तो अनजान बनते हुए बोली,"मुझे क्या तुम कमली से,सुगनी से, रत्ना से किसी से भी बात करो। मुझे क्या।"यह कह कर वह कंधे उचका कर घर से बाहर भाग गयी।पीछे पीछे जोगिंदर भी चला गया।उसे पता था रमनी उसे मन ही मन चाहती है पर उसे कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे वह अपने प्यार का इजहार कर सके।

पर अभी समय नही था ये सब करने का उसे शहर जाना था अपने सपने पूरे करने थे।घर आकर उसने शहर जाने की तैयारी शुरू कर दी परसों की ट्रेन से निकलना था ।अभी बैग मे कपड़े डाल ही रहा था कि मां ढेर सारा खाने का सामना गुजिया,मठरी, लड्डू और गांव का देसी घी लेकर आ गयी और बोली,"ले बेटा इसे भी अपने सामान के साथ रख लेना । वहां शहर मे कौन होगा जो मेरे बेटे के खाने पीने का ध्यान रखेगा।"

इतना कहकर मां की आंखों मे आंसू आ गये। जोगिंदर मां को पलंग पर बैठा कर उसकी गोद मे सिर रखकर लेट गया और बोला,"मेरी भोली मां ।मै तुम से दूर थोडी ही हूं एक टेलीग्राम करवाना पिताजी से अगली ट्रेन से मै यहां गांव पहुंच जाऊंगा। अब पढ़ाई के लिए शहर तो जाना पड़ेगा।वैसे मै भी पूरे गांव को याद करूंगा।रमनी,भोला,हरिया और आप दोनों को।पर मै जल्दी ही लौटकर आ जाऊं गा।"

जोगिंदर मां को ढांढस बंधाते हुए बोला।

उधर रमनी को जब नरेंद्र से ये पता चला कि वह और जोगिंदर आगे की पढ़ाई करने शहर जा रहे है तो उसका दिल धक से रह गया।उसे बड़ी अजीब सी बैचेनी हो रही थी।ना तो बच्चों संग खेल मे मन लग रहा था ना अमरूद ,आम तोड़ने में।बस रह रह कर बार बार जोगिंदर का ही ख्याल आ रहा था।रात मां ने जब रमनी से पूछा ,"क्यों री आज उछल कूद नही कर रही और खाना भी नही खाया तूने।कही ताप तो नही चढ़ गया है तुझे।"

"नही ना मां तुम भी ना बस अपनी तरफ से ही अनुमान लगाती रहती हो। तुमने सुना है कुछ ? वो जोगिंदर है ना वो …वो शहर जा रहा है आगे पढ़ने के लिए।"यह कहकर रमनी की आंखें पनीली हो गयी।

रमनी की मां उसकी ओर देखे बिना ही बोली,"लाड़ो बड़े लोगों की बड़ी बातें।अब वो जितना शहर मे पढ़ाई पर खर्च करेंगे उतने मे तो मै अपनी लाड़ो के हाथ पीले ना कर दूं गी।"

रमनी चिढ़ते हुए बोली,"मां तुम कुछ नही समझती बस दिन रात ब्याह ब्याह लगाएं रहती हो।"

यह कहकर वह मुंह मे साड़ी का पल्लू ठूंस कर वो अंदर कमरे मे चली गयी ताकि मां को उसकी रुलाई का भान न हो।

जोगिंदर को भी कल बहुत जरूरी काम करना था क्योंकि परसों तो उसे शहर जाना था।

(क्रमशः)

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19 Comments

नंदिता राय

08-Sep-2022 08:48 PM

बेहतरीन भाग

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Abeer

08-Sep-2022 04:05 PM

Bahut achhi rachana

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दशला माथुर

08-Sep-2022 03:19 PM

Bahut khub likha

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